“कानों में कंगना” वर्ष 1913 में “इंदु” में प्रकाशित हुई।
यह एक मार्मिक कहानी है।
मनुष्य के विवेक को जागृत करने वाले स्थलों का सूक्ष्म वर्णन करती है।
वासना और प्रेम में भेद को स्पष्ट किया गया है।
कानों में कंगना का प्रारंभ बेहद आकर्षक है और अंत दुखद।
कहानी के पात्र
किरण – कहानी की नायिका तथा योगीश्वर की पुत्री।
नरेंद्र(लेखक) – किरण का पति ।
योगीश्वर – नरेंद्र के गुरु तथा किरण के पिता।
कानों में कंगना कहानी की समीक्षा
कानों में कंगना कहानी स्त्री की स्तिथि स्वतः जाहिर करती है।
यह कहानी पुरुषों के आकर्षण में खोए रहने की कमजोरी का चित्रण है।
केंद्रीय पात्र किरण है।
कहानी की शुरुआत ही होती है जिसमें नरेंद्र किरण से पूछता है कि किरण तुम्हारे कानों में क्या है? किरण बताती है “कँगना”।
किरण एक भोली-भाली सी कन्या थी।
किरण पर नरेंद्र मोहित हो गया था।
हृषिकेश के पास के एक सुंदर वन में कुटी बनाकर योगीश्वर रहते थे।
लेखक या नरेंद्र योगेश्वर के यहाँ अपने पिता की आज्ञा अनुसार अपने सारे धर्म ग्रंथ को पढ़ने के लिए जाते थे।
एक दिन वह किरण को बिठा कुछ पढा रहे थे और नरेंद्र को देखते ही सहसा उठ खड़े हुए।
लेखक के कंधों पर हाथ रखकर गदगद स्वर में बोले –
नरेंद्र! अब मैं चला, किरण तुम्हारे हवाले है।
यह कहकर उन्होंने किरण का हाथ नरेंद्र के हाथों में रख दिया। अश्रु भरे नयनों के साथ वो चले गए।
कंकरी जल में जाकर कोई स्थायी विवर नहीं फोड़ सकती।
क्षण भर जल का समतल भले ही उलट-पुलट हो, लेकिन इधर-उधर से जलतरंग दौड़कर उस छिद्र का नामोनिशान भी नहीं रहने देती।
जगत की भी यही चाल है।
यदि स्वर्ग से देवेंद्र भी आकर इस लोक चलाचल में खड़े हो, फिर संसार देखते-ही-देखते उन्हें अपना बना लेगा।
एक विवाहिता के परिधान और श्रृंगार में किरण नरेंद्र को और भी मोहित किया करती थी।
इसी तरह दो वर्ष बीत गए एक दिन नरेंद्र मोहन के घर गया जहाँ उसे एक किन्नरी मिली उसको देखते ही वह मंत्रमुग्ध हो गया।
तभी से वह सबकुछ छोड़ उस किन्नरी के पीछे पागल सा हो गया।
नरेंद्र विवाह पश्चात एक किन्नरी के ऊपर मोहित हो जाता है।
इसी तरह पाँच महीने बीत गए इस दौरान उसने उस किन्नरी को कई उपहार भेंट किए।
किरण के सारे गहने बहाने बनाकर चोरी-चोरी उस किन्नरी को दे देता है।
जब उस किन्नरी को देने को कुछ नहीं बचा तब नरेंद्र ने किरण से पूछा कोई गहने बचे है?
इस समय तक केवल किरण के पास दो कंगन ही बचे थे, जो उसने अपने कानों में पहन रखा था।
उसने अपने कानों के कँगन को दिखाया उसे उस प्रथम पल की याद आई जब पहली बार नरेंद्र ने इसे देखा था।
यहाँ पर शकुंतला और दुष्यंत की कहानी का भी जिक्र मिलता है अभिज्ञान शाकुन्तलम जहाँ अंगूठी एकमात्र निशानी होती है।
किरण को इस बात की भनक लग गयी और दुःखित किरण इस दुनिया से चल बसी।
जो कि कहानी की शुरुआत में ही किरण से नरेंद्र पूछता है तुमने कानों में कंगन क्यों पहना है?
किरण के मृत्यु उपरांत नरेंद्र को आत्मग्लानि होती है और उसके पास पछताने के सिवा कुछ नहीं बचता है।