दुलाई वाली कहानी को हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी माना गया है।
दुलाई वाली वर्ष 1907 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई।
स्थानीयपन, यथार्थ और पात्र के अनुरूप भाषा के कारण इस कहानी को श्रेष्ठ माना गया है।
इसे मनोरंजन प्रधान कहानी कहा जाता है।
कहानी की शुरुआत काशी से होती है और समाप्ति इलाहाबाद में जाकर।
कहानी के पात्र
वंशीधर – मुख्य पात्र जो कि इलाहाबाद का निवासी है।
नवल किशोर – वंशीधर का ममेरा भाई है। जो कि हसमुख व्यक्ति है।
जानकीदेई – वंशीधर की पत्नी। एक गृहस्थ महिला है।
अन्य पात्र – नवल किशोर की पत्नी, वंशीधर की सास, साला, साली, इक्केवाला, आदि।
लेखिका परिचय
राजेन्द्र बाला घोष (बंग महिला) का हिंदी के शुरुआती कहानी के रचनाकारों में सर्वोच्च स्थान है।
ये पहली हिंदीं की मौलिक कहानी लेखिका के रूप में प्रसिद्ध है।
इन्होंने बहुत सी बंगला कहानियों का हिंदी में अनुवाद किया।
मौलिक कहानियों में इनकी दुलाई वाली कहानी प्रसिद्ध है।
दुलाई वाली कहानी की समीक्षा
वंशीधर जो कि इलाहाबाद के रहने वाले हैं अपने ससुराल बनारस आए हुए है पत्नी को विदा करवा लें जाने के लिए।
अपने परम मित्र नवल किशोर के साथ जाने के लिए वह आने वाले कल की यात्रा को आज ही पूर्वित कर देते है।
नवल किशोर एक कट्टर स्वदेशी व्यक्ति है जिन्हें विदेशी चीजों से नफरत है।
सिकरौल स्टेशन से उन्होंने ट्रेन ली नवल किशोर उन्हें मुगलसराय स्टेशन से साथ मिलने वाले थे।
वंशीधर ने नवल को गाड़ी में खूब ढूंढा कही नहीं मिले।
गाड़ी जैसे ही खुली एक स्त्री का पति स्टेशन पर ही छूट गया जिसके पास टिकट भी नहीं था वंशीधर ने उसकी मदद करने का प्रस्ताव दिया कि वह भी इलाहाबाद ही जा रहा है।
सभी स्त्रियाँ उस अकेली स्त्री के स्थिति पर टिप्पणी कर रही होती है।
उसी बीच एक स्त्री जो कि फ्रांसीसी छींट की दुलाई ओढ़े अकेली बैठी थी।
जो कुछ भी बोली नहीं किन्तु कभी-कभी वह घूँघट के भीतर से वंशीधर को ताक देती थी सामना होने पर मुँह फेर लेती थी।
वंशीधर को यह बात अजीब लगी की देखने में तो अच्छे घर की स्त्री लगती है पर आचरण अच्छा नहीं है।
तब तक रेलगाड़ी इलाहाबाद स्टेशन पहुँच जाती है।
जब स्टेशन पर गाड़ी खड़ी हुई तो उस अकेली स्त्री की मदद के लिए स्टेशन मास्टर के पास वंशीधर गए।
उस अकेली महिला को एक स्थान पर बिठा कर पर जब वापस आए तो वो वहाँ नहीं थी केवल वह दुलाई वाली स्त्री थी।
अंत में दुलाई हटाने के बाद इसका भेद खुलता है कि यही उनका मित्र नवल किशोर है।
वह संकटग्रस्त स्त्री कोई और नहीं नवल किशोर की बहू थी।
यह सब नाटक वंशीधर को परेशान करने के लिए रचा गया था।
कहानी की कथावस्तु बेहद साधारण है।
लेकिन कहानी में पाठकों को बांधे रखने की क्षमता है।
जिससे कहानी में जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है।
तत्कालीन समाज, परिस्थिति, घटना और मानसिकता का चित्रण है।
लोगों के दिनचर्या, रेलवे यात्री और स्टेशन का परिदृश्य है।
आस-पास के जीवन का सजीव चित्रण किया गया है साथ ही स्त्री-पुरुष की सोच और मानसिकता का यथेष्ठ जिक्र है।
यह कहानी में हास्य गुण भी व्याप्त है जिसमें देशी धोती और विलायती धोती के माध्यम से पश्चिमी पहनावे पर व्यंग्यात्मक प्रहार किया गया है।
उपन्यास के मौलिक होने का जिक्र ग्रामीण परिवेश के वर्णन जिसमें ग्रामीण महिलाओं द्वारा नवल किशोर की बहू के बारे में वार्त्तालाप से नारी मनोविज्ञान दर्शाया गया है।
Bahut ache se summarize kiya gya hai…. Gr8 work
आभार 😊
Nic post but pdf chahiye kaise milegi 8858341352
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