अंधेर नगरी नाटक के कुल छः अंक है जिसे दृश्यों के नाम से संबोधित किया गया है।
इसमें तत्कालीन समाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर हास्य नाटक के द्वारा ध्यानाकर्षण किया गया है।
भारतेंदु द्वारा रचित अंधेर नगरी संक्षिप्त और हास्य नाटक है।
नाटक में एक मुर्ख राजा के कारण सारे लोगों का जन जीवन अंधकारमय होता है ये दर्शाया गया है।
नाटक का मूल अर्थ लोक चेतना जागृत करने का है।
नाटक के पात्र
महंत – साधु के रूप में ज्ञानी और दूरदर्शी व्यक्ति।
गोवेर्धन दास – महंत का लालची शिष्य।
नारायणदास – महंत का दूसरा शिष्य।
राजा – मूर्ख राजा जो नशे में सराबोर रहता है और न्याय का अर्थ नहीं जनता।
फरियादी – राजा से न्याय की चाह रखता है।
कल्लू बनिया – जिसकी दीवार गिरने से फरियादी की बकरी मरी।
कोतवाल – फाँसी का फंदा बड़ा हो जाने के कारण जिसे फाँसी नहीं पड़ी।
अंधेर नगरी नाटक की समीक्षा
ऐसे राजा का क्षेत्र जहाँ राजा को कोई ज्ञान नहीं है न्याय और अन्याय में भेद नहीं पता। उसे अपनी प्रजा की कोई फिक्र नहीं है।
यह नाटक गद्द और पद्द के मिश्रण से बना है।
पहला दृश्य
महंत अपने दो चेलों को नगर में भिक्षा माँगने भेजते हैं। लोभ के नकारात्मक परिणाम से भी सचेत करते है।
दूसरा दृश्य
गोबर्धन दास ऐसे बाज़ार में होता है जहाँ सबकुछ टके सेर बिक रहा है।
खुश होकर ढाई सेर मिठाई लेकर गुरुजी के पास जाता है।
तीसरा दृश्य
- महंत टके सेर वाले नगर से शीघ्र – अतिशीघ्र वापस आने को अपने शिष्यों को कहते है।
गोवर्धन लालच के कारण वापस नहीं आता है।
चौथा दृश्य
- राजा के दरबार का दृश्य है जिसमें कोतवाल को फाँसी की सजा होती है।
फरियादी की बकरी के दीवाल गिरने से दब कर मृत्यु होने के कारण।
पाँचवा दृश्य
- मोटे शरीर होने के कारण जिससे उसका गला बड़े फाँसी के फंदे के लिए उपयुक्त था इसलिए उसे फाँसी के लिए ले जाते है।
क्योंकि दुबले कोतवाल के लिए फंदा बड़ा हो गया था।
छठा दृश्य
- गोवेर्धन दास को फाँसी की सारी तैयारियाँ हो रही है और वो गुरुजी की वापस आने वाली बातों को याद करता है ।
तभी गुरुजी आते है। दोनों में फाँसी पर चढ़ने के लिए उत्सुकता दिखाते है कि इस शुभ घड़ी में जो फाँसी पर चढ़ेगा वो सीधा स्वर्ग जाएगा।
यह सब सुन राजा खुद कहता है कि उसे स्वर्ग जाना है और खुद फाँसी पर चढ़ जाता है।
इस नाटक के माध्यम यह बताया गया है कि यदि राजा ही मूर्ख हो तो वह प्रजा और क्षेत्र के लिए विनाश का कारण सिद्ध होता है।
Nic Post
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