मेन्यू बंद करे

बकरी नाटक – सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की समीक्षा/सार और पात्र

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित बकरी नाटक वर्ष 1974 में प्रकाशित हुआ।

नाटक लेखन क्रम में दूसरा और प्रकाशन क्रम में पहला नाटक है।

इस नाटक के कारण सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी को नाटक के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हुई।

बकरी साधारण व्यक्ति की समसामयिक नाटक है।

राजनीतिक क्षेत्र के चुनावी योजनाओं, छलावे और हथकंडे सामने आते है।

अपने कुकर्मों को गाँधी जी के सिद्धांतों के आड़ में किस तरह से राजनीतिज्ञ छुपाते है इसका यथार्थ चित्रण नाटक में दिखता है।

नाटक के पात्र

बकरी नाटक में कोई पात्र नायक या नायिका नहीं है।

पात्र – नट, नटी, भिश्ती, दुर्जन सिंह, कर्मवीर, सत्यवीर, सिपाही, विपती, युवक।

बकरी नाटक की समीक्षा

बकरी गरीब जनता का प्रतीक है।

नाटक की कथावस्तु दो अंको में विभाजित है।

प्रत्येक अंक में तीन – तीन दृश्य है।

प्रत्येक दृश्य के बाद नट गायन की योजना है, जिसके माध्यम आसन्न स्तिथि का विश्लेषण किया गया है।

साधारण व्यक्ति के शोषण की कथा को परिलक्षित किया गया है।

राजनीति में कैसे गाँधी जी के विचारों और उनके नामों का दुरुपयोग किया जा रहा है।

नाटक में गाँधी जी की बकरी बता कर लोगों के शोषण किया जाता है।

गाँधी जी के सिद्धांतों का दुरुपयोग भी दिखाया गया है।

ग्रामीण इलाकों में जनता को गाँधी जी के सिद्धांतों को बोलकर राजनीतिज्ञ वोट प्राप्त करते है सत्ता के लालच में।

यह नाटक समसामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर सीधा चोट करता है।

इस नाटक की विशेषता है कि यह हर तबके के लिए बोधगम्य है चाहे वो किसी भी परिवेश के रहने वाले हो ग्रामीण या शहर।

नाटक की केंद्रबिंदु ग्रामीण लोगों के भोलेपन और मजबूरी का किस तरह से राजनेता दुरुपयोग कर रहे है।

बकरी नाटक में बकरी संस्थान, बकरी स्मारक निधि, बकरी सेवा संघ, बकरी शांति प्रतिष्ठान के नाम से हमारी व्यवस्था और सरकारी संस्थानों का निर्माण कर के लोगों के साथ छल किया जा रहा।

इन संस्थाओं का निर्माण लोगों के ज़मीन पर अवैध तरह से कब्जा किया जाता है।

इन संस्थाओं के तले राजनेता अपनी रोटी सकते है इन सारी संस्थाओं के माध्यम से गरीब जनता का शोषण किया जाता है।

जैसे गाँधी जी की बकरी बोलकर विपती की आय का एक मात्र सहारा बकरी को जबरन छीन लिया जाता है।

नाटक में एक युवक के द्वारा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने एवं लोगों को जागरूक करने का प्रयास करता दिखाया गया है।

अंत में युवक नारे लगाता हुआ दिखाया गया है और नाटक को एक समाधान की ओर इशारा करता है।

शिल्पगत परिचय

पात्र योजना की दृष्टि से नाटक में मंत्री, नेता, पुलिस आदि सुविधा भोगी पात्र के रूप में प्रस्तुत हुआ है, जो शोषक और शासक के रूप में भी परिलक्षित है।

विपती, युवक आदि शोषित लोगों के प्रतीक है।

भाषा की दृष्टि से सरल और जन भाषा है।

नाटक की भाषा खड़ी बोली है।

पात्र के स्तर पर ग्रामीण पात्रों की भाषा अवधी मिश्रित है।

इसे भी पढ़े अंजो दीदी नाटक की समीक्षा।

2 Comments

अपनी प्रतिक्रिया दे...

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

error: