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झूठा सच उपन्यास – यशपाल की समीक्षा और पात्र परिचय

झूठा सच उपन्यास दो भागों में विभाजित है –

1. वतन और देश (1958 ई.)

2. देश और भविष्य (1960 ई.)

झूठा सच की कहानी 1947 में आजादी के वक़्त हुए दंगे के ऊपर लिखी गयी है।

झूठा सच उपन्यास विभाजन के समय की त्रासदी को बयां करता है।

उपन्यास के पात्र

जयदेव पुरी – प्रमुख पात्र। यह मध्य वर्ग का प्रतिनिधि करता है।

तारा – उपन्यास की मुख्य नारी पात्र। जयदेव पुरी की बहन। कथा की केंद्रीय पात्र। आधुनिक सोच वाली स्त्री।

कनक – तारा की तरह आधुनिक और प्रगतिशील सोच वाली स्त्री। जो कि एक सम्पन्न परिवार की बेटी है।

अतिरिक्त पात्र – पंडित गिरिधारीलाल, नैयर, डॉ. प्राणनाथ, सूद, शीला, उर्मिला तथा सोमनाथ।

लेखक परिचय

यशपाल जी राजनीतिक और साहित्यिक दोनों ही क्षेत्र में रहे है।

आधुनिक हिंदी के मुख्य कथाकार है।

इन्होंने प्रेमचंद के यथार्थवादी परंपरा के मार्ग को जारी रखा।

इनके उपन्यास पर मार्क्सवादी विचारधारा का प्रभाव दिखता है।

इन्होंने वर्ग विभाजित, त्रस्त समाज और रूढ़ि परंपरावादी का जिक्र मिलता है और इन्होंने सबको एक समान दृष्टि से देखने की बात कही।

झूठा सच उपन्यास की समीक्षा

उपन्यास के प्रमुख पात्र जयदेव पुरी, उनकी पत्नी कनक और बहन तारा है।

तारा और जयदेव पुरी का एक परिवार है दूसरा कनक और जयदेव पुरी का परिवार।

इन दोनों के इर्दगिर्द ही उपन्यास की कहानी आगे बढ़ती नज़र आती है और विस्तार होकर बहुआयामी हो जाती है।

भारत में पहले से व्याप्त कुप्रथा जैसे छुआ – छूत, साम्प्रदायिकता आदि को ब्रिटिश साम्राज्य की नीति और मुस्लिम लीग के दो राष्ट्रों के सिद्धांत इसे और हवा दी।

जिसने मनुष्य के भीतर की मनुष्यता को मार डाला और उन्हें शैतान बना दिया।

जिसने दंगो, नरसंहार और कत्लेआम को भड़काया।

जिसमें स्त्री, बच्चों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया।

हज़ारों लोग मारे गए लाखों एक स्थान से दूसरे स्थान जाने को मज़बूर हो गए।

या तो भारत में या पाकिस्तान में विस्थापित हो गए।

इनसब स्थितियों का बेहद मार्मिक चित्रण यशपाल जी ने अपने उपन्यास में किया है।

जहाँ देश के विकाश, उन्नति का यथार्थ चित्रण मिलता है।

जयदेव पुरी एक भ्रस्टाचार में लिप्त राजनीति का उदाहरण देता है।

वही तारा जो कि एक क्रांतिकारी सोच वाली स्त्री जो कि विकाश के मार्ग पर चलने में विश्वास रखती थी।

वो खुद सुख, समृद्धि और प्रभाव में पड़कर विडंबना का दारुण उदाहरण के प्रदर्शन करती है।

यशपाल जी ने यह मार्ग दिखाने का प्रयास किया है कि देश का भविष्य देश की जनता के ही हाथ है जो कि स्थिति का सदुपयोग कर के सही निर्णय ले सके।

उपन्यास के दूसरे खण्ड जिसमें देश का भविष्य में 1947 के बाद की स्थिति का वर्णन है।

विभाजन के केंद्र में भारत में व्याप्त सभी धर्मों की वास्तविक स्थिति का यथार्थ चित्रण केंद्र में रख कर किया गया है।

साम्प्रदायिक चेतना किस प्रकार मानवीय नियति को प्रभावित करती है और सामान्य जन में निहित क्रांतिकारी चेतना को भी जड़ कर देती है और स्वार्थ की ओर मोड़ देती है।

मध्य वर्ग किस प्रकार भारत में क्रांतिकारी चेतना से युक्त होते हुए भी शोषित होने के बावजूद स्वयं भी वैसा जीवन का चुनाव करता है।

जयदेव पुरी, तारा, कनक, पंडित गिरिधारीलाल, नैयर, डॉ प्राणनाथ, सूद, शीला, उर्मिला तथा सोमराज सभी मध्यवर्गीय समाज के द्योतक है।

सभी पात्र आर्थिक और सामाजिक संघर्ष में संघर्षरत रहते है।

ज्यादातर पात्र प्रेम और विवाह की समस्या के अनेक पहलुओं को समक्ष रखते है।

इतने सारे पात्रों की व्यक्तित्व को स्पष्ट रूप से चित्रित करने में सफल रहा है।

लेखक की सोच स्त्री पात्रों के माध्यम से व्यक्त हुआ है जो कि तारा और कनक के रूप में है।

उपन्यास का उद्देश्य पाठकों के समक्ष विभाजन की त्रासदी को प्रस्तुत करने का रहा है।

उपन्यास की भाषा सामान्य जन की है और लोकप्रचलित बोलचाल की भाषा का उपयोग किया गया है।

सजीवता दर्शाने के लिए लेखक पात्र अनुरूप भाषा और शब्दों का चयन किया है ।

झूठा सच उपन्यास में केवल विभाजन की त्रासदी को ही नहीं दर्शाया है बल्कि उससे निर्भीक जनता की दृढ़ इच्छाशक्ति को भी यशपाल जी ने बताया है।

इसे भी पढ़े मानस का हंस उपन्यास की समीक्षा।

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