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गैंग्रीन / रोज़ कहानी – अज्ञेय की समीक्षा/सार और पात्र

गैंग्रीन / रोज़ कहानी का उद्देश्य एक युवती मालती के यांत्रिक वैवाहिक जीवन के माध्यम से नारी जीवन और उसके सीमित घरेलू परिवेश में बीतते उबाऊ जीवन की कथा है।

एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए व्यक्तित्व की त्रासदी का चित्रण है।

रोज़ एक ही दिनचर्या पर चलती मालती के जीवन की कहानी जो शीर्षक से भी बयान होती है।

यह कहानी सर्वप्रथम गैंग्रीन नाम से प्रकाशित हुआ लेकिन बाद में इसका शीर्षक बदलकर रोज़ कर दिया गया।

यह कहानी अज्ञेय के कहानी संकलन विपथगा के पहले संस्करण में हैं, पर पाँचवे संस्करण में, जो 1990 में नेशनल पब्लिशिंग हॉउस, दिल्ली से प्रकाशित हुआ, यही कहानी गैंग्रीन शीर्षक नाम से प्रकाशित है।

कहानी के पात्र 

मालती – गैंग्रीन / रोज़ कहानी की मुख्य पात्र। विवाहित स्त्री जो एक बच्चे की माँ और अपने वैवाहिक जीवन से त्रस्त है। 

महेश्वर – मालती का पति जो एक पहाड़ी गाँव में सरकारी डिस्पेंसरी में डॉक्टर है।

टिटी – मालती और महेश्वर का बच्चा।  

कथाकार – जो कि एक अथिति है; मालती के बचपन का मित्र और रिश्ते का भाई है ।

गैंग्रीन / रोज़ कहानी की समीक्षा

इस कहानी को तीन भागों में दर्शाया गया है ।

इस कहानी में एक विवाहिता के मन की उदासी और अकेलेपन अनुभूति का चित्रण है।

कहानी में जब उसका भाई उससे वर्षों बाद मिलने आता है तो मालती उसका स्वागत बड़े ही औपचारिक ढंग से करती है।

मालती में थोड़ा भी उत्साह नहीं दिखाई देता है।

उससे उसका हाल समाचार तक नहीं पूछती।

एक बातूनी लड़की शादी के दो वर्षों में ही एक यांत्रिक लड़की में तब्दील हो गयी है।

पूछे गए प्रश्नों के उत्तर केवल हाँ और ना में देती है या दो-चार शब्दों में देती है।

इससे यह प्रतीत होता है कि उसके पास कहने को कुछ भी नहीं है।

वह या तो घर के कार्य या अपने बच्चे को संभालने में लगी रहती है।

प्रथम भाग में कहानी में मालती की बाह्य स्तिथि दिखती है।

दूसरे भाग में मालती के मनः स्थिति का चित्रण है।

जिसमें उसके हाव-भाव और मानसिक उथल-पुथल उसके मन के भीतर के द्वंद्व को बयान करते है।

कहानी का केंद्रबिंदु मालती और उसका जीवन है।

कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर के डिस्पेंसरी से लौटने का जिक्र है।

महेश्वर अपने डिस्पेंसरी के गैंग्रीन से पीड़ित मरीजों का जिक्र करता है।

कहानी में मालती को अपने रोज होने वाले दिनचर्या या घटनाओं की आदि सी हो चुकी थी।

जैसे टिटी के रोने से ज़्यादा कुछ फ़र्क नहीं पड़ता उसके पलंग से भी गिर पड़ने से उसे कोई ख़ासा फर्क नहीं पड़ता।

मालती के नज़र में ये तो रोज़ की बात है जो वह गिर पड़े या रोता रहे।

कहानी का मुख्य स्वर मालती के द्वारा किए गए समझौते पर है न कि उसकी चुनौतियों पर।

चरित्र चित्रण के लिए कई विधियों का सहारा लिया गया हैं जिनमें अंतर्द्वंद्व की प्रस्तुति, सार्थक संछिप्त संवाद, जीवंत भाषा, आदि।

शिल्पगत विशेषता

कहानी की भाषा पात्रानुकूल तथा बोलचाल की शब्दावली से युक्त है।

जिनमे तत्सम, तद्भव शब्दों का समावेश है।

संछिप्तता तथा भावनुकूलता इसकी विशेषता है।

कहानी का उद्देश्य एक नारी के यांत्रिक वैवाहिक जीवन के माध्यम उसके जीवन की यांत्रिक परिस्थितियों और सीमित घरेलू परिवेश के अंतर्गत ऊबाऊ जीवन का चित्रण है।

इसे भी पढ़े जिंदगीनामा उपन्यास की समीक्षा।

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