पिता कहानी ज्ञानरंजन की महत्वपूर्ण कहानियों में से एक है।
पारिवारिक सम्बन्धों के बदलते स्वरूप को यह कहानी दर्शाती है।
पुरानी और नई पीढ़ियों के सोच में आए बदलावों का चित्रण करती है।
पिता अपने पुत्र के पीढ़ी से तारतम्यता नहीं बैठा पा रहे।
वही पुत्र अपने पिता के पीढ़ियों को नहीं समझ अपना पा रहा।
कहानी के पात्र
पिता – मुख्य पात्र जो कि पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते है। स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर पात्र।
पुत्र – यह भी एक महत्वपूर्ण पात्र है। जो कि आधुनिक पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है।
पिता कहानी की समीक्षा
इस कहानी के माध्यम से पुरानी और आधुनिक पीढ़ी में अंतर और उनके बीच का द्वंद्व दर्शाया गया है।
पुराने सोच वाले पिता को आजकल के परिवेश में ढल पाना मुश्किल हो रहा है,
कहानी में पिता अपनी पुरानी परंपरा अपने बच्चों पर थोप भी नहीं रहे।
बल्कि उन्हें आधुनिक युग को जीने की बातें कर रहे हैं पर खुद को उस वातावरण से दूर ही रख रहे हैं।
जैसे कहानी में एक पंक्ति में पिता यह कहते है कि –
“आप लोग जाइए न भाई, कॉफी हाऊस में बैठिए, झूठी वैनिटी के लिए बेयरा को टिप दीजिए, रहमान के यहाँ डेढ़ रुपए वाले बाल कटाइए, मुझे क्यों घसीटते हैं।”
इस कहानी में किसी भी पीढ़ी को निशाना नहीं बनाया गया है।
पिता अपने बच्चों को आधुनिक बनने से नहीं रोकते किन्तु उसमें शामिल नहीं होते और पुत्र पिता को आधुनिक बनाना चाहता है।
यह कहानी पिता और पुत्र के बीच दूरी होने के बावजूद उनके बीच एक समझ और द्वंद्व की बात करती है।
पिता और पुत्र के मध्य एक प्रेमयुक्त और भावनात्मक दूरी है इसके पश्चात दोनों एक दूसरे का ख़्याल रखते है।
दोनों एक साथ रहने के बावजूद साथ नहीं हो पाते है यह उस दौर और समकालीन दौर में भी प्रासंगिक विडंबना है।
पुत्र पिता को सारी सुविधाएं देना चाहता है और प्रयासरत भी रहता किन्तु उन्हें वो सब नहीं पसंद।
जैसे कहानी की पंक्ति देखिए –
“पिताजी आराम से पंखे के नीचे सोए, गुसलखाने में खूबसूरत शावर में स्नान करें, लड़के द्वारा लाई गई खाद्य सामग्री का स्वाद लें, दिल्ली एम्पोरियम की बढ़िया धोती पहने, किन्तु पिताजी को यह बातें कतई पसंद नहीं।”
पुत्र पिता से बड़े प्यार से कहता है –
“मुहल्ले में हम लोगों का सम्मान है, चार भले लोग आया जाया करते हैं,
आपका बाहर चौकीदारों की तरह रात को पहरा देना बड़ा ही भद्दा लगता है।”
पिता अपने पुत्र के वैवाहिक जीवन में कोई खलल न पड़े इस विचार से बाहर सोना पसन्द करते है।
पिता के लाख मना करने पर पुत्र पिता से हमेशा आग्रह करता रहता है।
इस मनाही से उसका हृदय कभी टूटता नहीं।
इस कहानी में ज्ञानरंजन जी ने पिता पुत्र के संबंध की वास्तविक पहलुओं को उजागर किया है।
दोनों के बीच प्रेम और चिंता करते है पर कभी जाहिर नहीं करते जो कि हर परिवार में विद्यमान है।
कहानी में कहीं भी दोनों के संबंध में कोई खटास नहीं दिखी।
घर के बूढ़े-बुजुर्ग अपनी बाकी जिंदगी समय बिताने के कार्य में लगा देते है।
यह सोच कर कि हम तो अपनी जिंदगी जी चुके।
जिसके कारण खुद कष्ठ सहते है यह हवाला देकर कि हमारे समय में नहीं था।
तब भी तो जिंदगी बिता दी अब उसके पीछे क्यों भागे।
ज्ञानरंजन जी ने दो पीढ़ियों के बीच के आपसी वैमनस्यता न दिखा कर दोनों को भावात्मक रूप से एक दिखाया है।