आपका बंटी उपन्यास बाल मनोविज्ञान पर लिखा एक बाहुचर्चित और कालजयी उपन्यास है।
आपका बंटी उपन्यास का प्रकाशन 1979 में हुआ।
माँ-बाप के झगड़े के मध्य किस परिस्थितियों से एक बच्चे का बचपन।
अपने माता-पिता को अलग न होने की कामना में गुजरता है।
जिंदगी को चलाने और निर्धारित करने वाली कोई भी स्तिथि कभी इकहरी नहीं होती, इसके पीछे एक साथ अनेक और कभी-कभी बड़ी विरोधी प्रेरणाएँ निरंतर सक्रिय रहती हैं।
उपन्यास में कलकत्ते से पास ही बांकुरा जगह का जिक्र है।
उपन्यास के पात्र
बंटी – मुख्य बाल पात्र। जो एक माता-पिता के होने के वाबजूद अनाथ की भांति जीवन व्यतीत करता है।
शकुन – बंटी की माँ और कॉलेज की प्रिंसिपल। आधुनिक और स्वतंत्र विचार की स्त्री है।
अजय – बंटी का पिता।
वकील चाचा – शकुन और अजय का वकील।
जो प्रायः बंटी के लिए उसके पापा की ख़बर लाया करते हैं, और उनके द्वारा भेजे गए खिलौने भी।
फूफी – शकुन की सेविका जो अजय से घृणा करती है।
डॉ. जोशी – शकुन जिससे तलाक के बाद विवाह करती है।
अमी और जोत – डॉ. जोशी के बच्चे।
अतिरिक्त पात्र – मीरा, माली, आदि।
आपका बंटी उपन्यास की समीक्षा
आपका बंटी उपन्यास में मन्नू भंडारी ने पति-पत्नी के संबंध विच्छेद की समस्या से जूझता बंटी की मार्मिक दशा को बयाँ किया है।
बंटी चाहता है कि उसके पापा-मम्मी दोनों साथ रहे।
एक दूसरे से लड़े नहीं किन्तु ऐसा नहीं हो पाता और दोनों का तलाक हो जाता है।
बंटी के पापा मीरा नामक स्त्री के साथ रहने लगते है।
यह सब देख शकुन को भी लगता है कि मैं ही क्यों ऐसे उदास जीवन जीऊ जबकि वो मीरा के साथ खुश है।
इस लिए शकुन ने डॉ. जोशी से विवाह करने का फ़ैसला किया जिसके दो बच्चे भी रहते है।
बंटी को डॉ. जोशी का घर नहीं पसंद आता और उसकी मम्मी का प्यार अब तीन हिस्सों में बँट जाने से उसे दुःख होता है।
उसे अपनी पुरानी मम्मी चाहिए थी जो उसके साथ सोती थी हमेशा वो मम्मी के गले में झूलता रहता था अब वैसा कुछ नहीं था।
ततपश्चात वो अपने पापा को फ़ोन कर के कलकत्ता जाने की बात करता है किंतु वहाँ भी वैसा माहौल नहीं मिलता जैसा वो जीता था।
सौतेली माँ को भी वह पूर्णतः नहीं अपना पाता।
बंटी की स्तिथि माता-पिता वाले अनाथ बच्चे सी हो गयी थी और होस्टल में अकेली जिंदगी बितानी पड़ती है।
उपन्यास में दोनों पक्ष अपने स्थान पर सही ही दिखाई देता है।
बंटी के माता पिता अपने खुशी की सोचते है किंतु बंटी के लिए कुछ नहीं सोचते।
माता-पिता का एक स्वार्थी स्वभाव नज़र आता है।
जिसमें त्याग भावना नहीं है जो कि अपने बच्चे के लिए ही एक दूसरे की गलतियों को भूलना नहीं चाहते।
उपन्यास का उद्देश्य खंडित रिश्ते को ही दिखाना मात्र नहीं है किंतु उसका बच्चे पर दुष्प्रभाव दिखाया गया है ।
शिल्पगत परिचय
उपन्यास में संवाद संक्षिप्त और सरल है।
भाषा पात्रों के अनुरूप है।
उपन्यास की भाषा अंग्रेजी, संस्कृत के तत्सम, तद्भव, उर्दू, अरबी, फ़ारसी का सृजनात्मक प्रयोग किया है।
भाषा में मनोवैज्ञानिकता और मनोविश्लेषणात्मक दिखाई देती है।
यह उपन्यास एक नई बात, नए विचार, नई भाषा एवं नया भाव-बोध के साथ हिंदी का पहला सशक्त उपन्यास है।
इस पूरी स्थिति की सबसे बड़ी विडंबना ही यह है कि इन संबंधों के लिए सबसे कम जिम्मेदार और सब ओर से बेगुनाह बंटी ही इस त्रासदी को सबसे अधिक भोगता है।