महाभोज नाटक सर्वप्रथम उपन्यास के रूप 1979 में प्रकाशित हुआ।
फिर इसे नाटक के रूप में 1983 में प्रकाशित किया गया।
हिंदी साहित्य जगत में पहली अपने-आप में सबसे अलग कृति है जिसे उपन्यास और नाटक दोनों विधाओं में प्रकाशित किया गया।
महाभोज नाटक का कथानक 1977 में घटित बिहार के पटना जिले का बेलछी नरसंहार है।
उपन्यास की दृष्टि से ‘महाभोज’ न चरित्र-प्रधान उपन्यास है, न समस्या-प्रधान।
महाभोज आज के राजनैतिक माहौल को उजागर करने वाला स्तिथि-प्रधान उपन्यास है।
आज राजनीति को स्वप्नों, आदर्शों और मूल्यों वाला व्यक्ति नहीं चलाता, बल्कि राजनीति खुद अपने चरित्र गढ़ती चलती हैं – ऐसे चरित्र जो अपने भीतरी निर्णय, विवेक या साहस से नहीं चलते, वरन स्तिथियों के दवाब से बनते बिगड़ते है।
उनका महत्व इसमें निर्जीव मोहरों से अधिक नहीं।
हर प्यादे की लड़ाई फ़र्जी बनने की है और लड़ाई की इस बिसात ने समाज के हर वर्ग को धीरे-धीरे अपने चंगुल में कस लिया है।
– मन्नू भंडारी
आज़ादी के बाद के कानून, न्याय व्यवस्था का पतन, सत्तारूढ़ व्यक्तियों के द्वारा अपराधी गतिविधियों में संलिप्तता और व्यक्ति विशेष के साथ अमानवीय व्यवहार का दृश्य परिलक्षित होता है।
नाटक के पात्र
बिसेसर उर्फ बिसू – हरिजनों का हमदर्द, जो हरिजन बस्ती में आगजनी के सबूत इकट्ठा कर लेने के कारण मार दिया जाता है।
दा साहब – मुख्यमंत्री, शहर के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति।
सुकुल बाबू – भूतपूर्व मुख्यमंत्री, विरोधी पार्टी के नेता।
सक्सेना – एस० पी० जो कि हरिजनों के आवाज़ को कायम रखता है।
लखनसिंह – दा साहब का विश्वास-पात्र सरोहा चुनाव के लिए प्रत्याशी जो कि सुकुल बाबू के मुकाबले खड़ा किया जाता है।
अप्पा साहब – सत्तारुढ़ पार्टी के अध्यक्ष।
पांडेजी – दा साहब के निजी सचिव।
जमना बहन – दा साहब की पत्नी।
सिन्हा – डी० आई० जी०।
दत्ता बाबू – ‘मशाल’ साप्ताहिक के संपादक।
भवानी – ‘मशाल’ का सहायक संपादक।
नरोत्तम – प्रेस-रिपोर्टर।
महेश – रिसर्च-स्कॉलर एवं सूत्रधार।
रत्ती – दा साहब का पी० ए०।
मोहनसिंह – पुलिस कांस्टेबल।
हीरा – बिसू का बाप।
बिंदा – बिसू का अभिन्न मित्र।
रुकमा – बिंदा की पत्नी।
जोरावर – सरोहा का जमींदार-नुमा नव-धनाढ़्य किसान।
काशी – सुकुल बाबू का विश्वशनीय कार्यकर्ता।
थानेदार – सरोहा का थानेदार, जोरावर का चमचा।
लठैत – जोरावर का आदमी।
लड़की – जोरावर की लड़की।
जोगेसर साहू – सरोहा का बनिया।
महाभोज नाटक की समीक्षा
महाभोज नाटक में सरोहा गाँव का जिक्र है जहाँ यह घटना घटित होती है। जो कि उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित है।
इसमे नैतिकता, अंतर्विरोध, अंतर्द्वंद से जूझते सत्ताधारी वर्ग, विपक्ष, पत्रकार और प्रशासनिक वर्ग के अवसरवादी चरित्र पर टिप्प
नाटक दृश्यों में विभाजित हैं।
दृश्य : एक
प्रथम दृश्य में गाँव का माहौल है जहाँ बिसेसर की माँ बिसेसर की लाश के समीप रोती है।
गाँव में बिसेसर की लाश का पुलिया पर मिलने से सनसनी का माहौल व्याप्त है।
पुलिस खानापूर्ति करती है हालांकि आय-दिन की तुलना में थोड़ी मुस्तैदी दिखाती है।
गाँव में सबको यह यकीन था कि आगजनी वाली घटना के कारण बिसू की हत्या हुई है ।
दृश्य : दो
शहर का माहौल है जिसमे मशाल साप्ताहिक का कार्यालय।
नरोत्तम गाँव से सीधे रिपोर्ट लेकर भवानी को सब हालिया सुनाता है।
बिसेसर एक हरिजनों का नेता था।
गाँव में चुनावी सरगर्मी में ऐसा होना कोई आम बात नहीं है।
आगजनी वाली घटना में किसी के कानों पर जू तक नहीं रेंगा था। किन्तु इस घटना में सब-कुछ मुस्तैदी से हो रहा है।
पूर्व मंत्री सुकुल बाबू का चुनाव में खम ठोककर खड़ा होना।
दोनों के बीच समसामयिक परिस्थितियों के बारे में बात होती हैं कि आज भी हरिजनों की जिंदगी बदतर ही है।
आगजनी की घटना में नौ लोगों के जल कर मर जाने के बाद भी मामला ठंडा पड़ गया था जबकि विधानसभा तक बात उठी थी।
यहाँ पत्रकारिता का दो चेहरा दिखाई देता है जहाँ एक ओर नरोत्तम है जो सही मायनों में पत्रकारिता करने की कोशिश कर रहा वहीं भवानी है जो सेल किस माध्यम से हो वैसी पत्रकारिता करना चाहता है।
नाटक में समसामयिक परिस्थितियों को यथावत जिक्र है जो कि आज के परिपेक्ष्य में भी प्रासंगिक है।
दृश्य : तीन
दा साहब का घर और घरेलु दफ़्तर का दृश्य है।
जहाँ लखन अख़बार में छपी बिसू की हत्या के बात से हैरान है।
हरिजनों के सारे वोट विपक्षी पार्टी सुकुल बाबू को जाएगी इस बात से आतंकित है।
चुनावी दाव-पेच और वोट कैसे लालच देकर लिया जाय इसकी योजना बनाई जाती है हालिया चुनावी माहौल के मद्देनजर जिसे महाभोज नाटक में दिखाया गया है।
दृश्य : चार
बिसेसर की मौत से आक्रोशित बिंदा उसके मौत का बदला लेने को तैयार रहता है।
महेश और रुकमा उसे इस पचड़े में न पड़ने की सलाह देते है।
बिसेसर की मौत के कारण गाँव में सभी ग्रामीण नारे और जुलूस निकालकर आक्रोश दर्शाते हैं।
वही सुकुल बाबू गाँव में आगामी चुनाव के मद्देनजर जनसभा करते है । जनसभा का अंत सुकुल बाबू और दा साहब के लोगों के बीच मारपीट में समाप्त होती है।
दृश्य : पाँच
राजनीति में किस प्रकार प्रलोभन देकर रैलियों में भीड़ इकट्ठी की जाती हैं इसमें यह तरकीब सुकुल बाबू अपनाते है।
इस रैली से दा साहब के पार्टी के लोग आगामी चुनाव के मद्देनजर थोड़े चिंतित हो जाते है।
वैसे भी दा साहब के पार्टी लोग लखन को सुकुल बाबू के मुकाबले खड़े करने से उनसे बेहद नाराज़ थे ।
दा साहब मामले की पुनः रिपोर्ट बनाने सक्सेना को कहते है।
अप्पा साहब से पार्टी के सभी लोग मतभेद को दरकिनार करते हुए को पार्टी का साथ देने कहते है ।
दृश्य : छह
मशाल का दफ़्तर जहाँ महेश और बिंदा नरोत्तम के कहने पर आगजनी की सबूत लेकर जाते है।
दत्ता बाबू द्वारा ढंग से और मामले की गंभीरता को न समझते हुए बेहद लापरवाही के साथ पेश आते है।
जिससे वो दोनों गुस्से में वापस चले जाते है।
नरोत्तम का इस बात से आगबबूला होकर मशाल छोड़ने की बात करता है।
दृश्य : सात
गाँव में दा साहब के जन संबोधन की तैयारी जोरों से की जा रही है जिसमे जोरावर पूरी व्यवस्था का जायज़ा खुद बारीकी से ले रहा है।
लेकिन सारे किए पर दा साहब आकर पानी फेर देते है वह सीधे बिसू के पिता से मिलने चले जाते है और जोरावर को पूछते तक नहीं।
इस बात से जोरावर खुद को बहुत तिरस्कृत महसूस करता है।
इसी बीच काशी जो के सुकुल बाबु विरोधी पार्टी का सदस्य है इस मौके का फायदा उठाता है और जोरावर को भड़का कर चुनाव में खड़े होने की राय देता है।
दृश्य : आठ
एस०पी० सक्सेना बिसू की मौत की पुनः तहकीकात करने गाँव आते है।
पूरे गाँव में खलबली मची हुई है।
सक्सेना एक-एक कर के सबकी गवाही लेता है।
बिंदा ने साफ-साफ जोरावर का नाम बताया और आगजनी के पीछे भी उसी का हाथ होने के कारण वो बिसू के जान का दुश्मन था।
आगजनी के सबूत बिसू ने इकट्ठे किये हुए थे जिसमें जोरावर की संलिप्तता थी।
पोस्टमार्टम के रिपोर्ट में भी ज़हर से मौत की बात पता चली थी।
दृश्य : नौ
अचानक सक्सेना के रेस्ट हाउस पर रात को महेश आता है।
बिंदा की गवाही के कारण उसकी पिटाई की बात बताता हैं और जिन लड़कों ने बिसू को जहर दी थी उनके बारे में बताता है।
दोनों के नाम और यह कि उन दोनों को पकड़ लीजिए वही एकमात्र सबूत हैं नहीं तो बिंदा ही उसे मार डालेगा।
दोनों लड़के टिटहरी गाँव के हैं बिंदा भी वही गया है।
दृश्य : दस
सक्सेना ने रिपोर्ट में जोरावर को साफ-साफ हत्यारा घोषित किया।
जोरावर के चुनाव में खड़े होने से, होने वाले नुकसान से दा साहब हैरान हो जाते है।
जोरावर को सक्सेना की रिपोर्ट से धमकाते है और वह चुनाव में खड़े होने के फैसले को बदल देता है।
दा साहब इस मामले में बिंदा को बिसू का हत्यारा बताते हैं कि रुकमा के साथ संबंध को बिंदा बर्दाश्त नहीं कर पाया।
चोरी छुपे उसने यह कार्य को अंजाम दिया।
दा साहब ने डी०आई०जी० को कहा कि सक्सेना को सस्पेंड करो और बिंदा को गिरफ्तार।
इस दृश्य में राजनीति में व्याप्त शक्ति का दुरुपयोग साफ दिखाई देता है।
ईमानदारी का कोई वजूद नहीं यह भी साफ दिखता है।
दृश्य : ग्यारह
जोरावर के घर पर जश्न का माहौल है, जहाँ उसके बिसू के हत्या के मामले से साफ़ बाहर निकल जाने की खुशी में नाचने वाली को बुलाया गया है।
दूसरी तरफ़ सिन्हा आई०जी० में प्रोमोशन और शादी की पच्चीसवीं सालगिरह की जश्न मना रहे।
थाने में बिंदा को मार-मार के बिसू के खून का इकरार करवाने में लगे है।
महाभोज नाटक में कभी दृश्य दा साहब के घर का दिखाया जाता है कभी थाने में पिटता बिंदा का।
एक तरफ़ दा साहब बिंदा को फँसा कर दुनिया के सुख और आराम फरमा रहे वहीं बेकसूर बिंदा दर्द से कराह रहा है।
फिर पुनः जोरावर के घर का दृश्य, सिन्हा का पार्टी का दृश्य और दा साहब के खाने पीने का दृश्य आता है ये सभी महाभोज चलते रहते है।
फिर थाने का दृश्य आता है बिंदा कराह रहा होता है महेश वहाँ जाकर भी कुछ नहीं कर पाता और नाटक समाप्त हो जाता है।