चीफ़ की दावत कहानी मध्यवर्गीय सोच, परिवेश और पारिवारिक रहन-सहन को दिखाती है।
अपने वृद्ध हो चुके माता-पिता के साथ किए जाने वाले व्यवहार को भी परिलक्षित करता है।
जो माता-पिता अपना सब-कुछ अपने बच्चों पर न्योछावर करने को हमेशा तत्पर रहते है।
किस तरह वही बच्चे बड़े होकर अपने माता-पिता को जग-जाहिर करने में संकोच करते है।
उन्हें ऐसा लगता है उनके भेषभूषा या उनका आज के जमाने से तारतम्यता न बिठाने के कारण उनको दरकिनार कर देते है।
कहानी के पात्र
शामनाथ – एक मध्यवर्गीय व्यक्ति जो पदौन्नति के लिए कुछ भी कर सकता है।
शामनाथ की पत्नी – जो कि शामनाथ का उसके हर कार्य में उसका साथ निभाती है।
शामनाथ की माँ – पुरानी ख़्याल और अनपढ़ होने के कारण उसे दरकिनार किया जाता है।
फिर भी अपने ममत्व को नहीं त्यागती है।
चीफ़ – शामनाथ का बॉस एक अमेरिकी है जो कि आदर्शवादी और शिष्टाचारी व्यक्ति है।
चीफ़ की दावत कहानी की समीक्षा
कहानी की शुरुआत दावत की तैयारियों के साथ होती है जहाँ शामनाथ और उनकी पत्नी कार्यों में व्यस्त है।
घर की सारे बेकार चीजें छुपाई जा रही थी।
तभी शामनाथ की नज़र उसकी माँ पर गयी कि माँ का क्या होगा!
शामनाथ ने तरकीब खोजी जिससे माँ को सबके नजरों से बचाया जाए।
माँ से कहा कि जल्दी से खा कर बरामदे में बैठी रहना जब हम सब बैठक में बैठे रहे।
जब वहाँ आ जाए तो तुम गुसलखाने के रास्ते बैठक में चली जाना।
माँ को सबके सामने न आने की सख्त हिदायत थी।
न ही जल्दी सोने की आज़ादी क्योंकि वो खर्राटें लेती है।
माँ लज्जित और अवाक होकर बेटे की सारी बातों से राजी हो जाती है।
उसने माँ को क्या पहनना सब बता देता है।
तभी माँ ने कह दिया पहनने वाले ज़ेवर तुम्हारी पढ़ाई में बिक गए।
यह बात शामनाथ को तीव्र वेग से चुभा।
प्रतिउत्तर में उसने कहा कि कुछ बनकर ही आया हूँ मुझसे जेवर का दूना ले लेना।
शामनाथ की दावत सफलता पूर्वक हुई अब सब खाने की तरफ़ बढ़े समय दस बज चुका था।
खाने के लिए सब बरामदे की ओर गए तो शामनाथ की माँ कुर्सी पर पैर ऊपर कर बैठे-बैठे सो रही थी।
यह सब देख शामनाथ भीतर-ही-भीतर बेहद क्रुद्ध हुआ।
माँ घबराई हुई चीफ़ से मिली हालांकि चीफ़ को उनकी माँ से मिलकर बेहद खुशी हुई थी।
चीफ़ ने माँ के बारे में पूछा कि ग्रामीण लोगों को गाने, नाचने आदि का शौक होता है।
शामनाथ ने माँ से गाने को कहा माँ शर्म और घबराहट के कारण झिझक रही थी।
बेहद जिद्द के कारण अन्तः माँ ने एक विवाह का गीत सुना दिया।
चीफ़ ने पंजाब की कास्तकारी के बारे में पूछा शामनाथ ने एक पुरानी फटी फुलकारी दिखाई।
उसने एक माँ के हाथों बनी नई फुलकारी भेंट करने की बात भी कही।
माँ वहाँ से आकर अपने कोठरी में बैठी रोती रही तभी शामनाथ बेहद खुश हुए आया।
माँ को डर था कि उसे कहीं डाँट न पड़े कही कोई गलती तो नहीं हो गयी उससे।
शामनाथ बेहद खुशी के साथ आया माँ को गले लगा कर कहा कि चीफ़ बेहद खुश हुए है।
माँ ने शामनाथ को हरिद्वार भेज देने की बातें कही।
सुनते ही शामनाथ गुस्सा हो उठा।
कहने लगा मैंने जो फुलकारी देने की बातें कही है वह कैसे पूरी होगी और सब क्या कहेंगे कि मैं माँ को नहीं रख सकता।
माँ ने कहा मुझे अब दिखता कहाँ जो बना सकूँ।
शामनाथ ने गुस्से में कहा कि मेरी तरक्की हो जाएगी अगर ऐसे ही चीफ़ को खुश रखूँगा तो।
ये सुनकर माँ अपने बेटे की खुशी में ही अपनी छिपी खुशी को रोक नहीं पाई।
बोली ठीक हैं जैसा बन पड़ेगा बना दूँगी।
चीफ़ की दावत कहानी में साफ़ दर्शाया गया है कि बेटा, माँ को कुछ देर तक छुपने या कैसे रहना है उसकी शिक्षा दे रहा है।
उसी माँ की वास्तविक छवि से चीफ़ खुश हुआ।
पूरे दावत की रंगत माँ के गाने ने बदल कर रख दी थी।
अब माँ शामनाथ के लिए प्रिय हो गयी थी क्योंकि चीफ़ खुश हुआ था।
सबसे महत्वपूर्ण बात कि फुलकारी बनवानी थी।
कहानी में बेटे का स्वार्थ माँ की दुर्बलता से ऊपर है दिखाया गया है।
बेटे को खुशी केवल इस लिए है कि चीफ़ खुश हुआ और उसे आने वाला भविष्य सफल लग रहा था।
माँ-बाप जिस बच्चे को अपनी सारी इक्षाओं को मारकर बच्चों की परवरिश करते है कि वो आगे चलकर तरक्की पाए उसी में अपनी खुशी भी समझते है।
वही बच्चे अपनी तरक्की में माँ-बाप के श्रेय को नकार देते है।
जो उनकी सेवा करने के जगह उन्हें तिरस्कार प्राप्त होता है।
यह कहानी समसामयिक परिस्थितियों को बयाँ करती है।
वृद्ध माता-पिता के तिरस्कार करने और सम्मान न देने की चलन को दर्शाती है।
लेकिन इन सब के पश्चात माँ-बाप का स्नेह अपने बच्चों के प्रति कभी कम नहीं होता यह भी दर्शाती है।