सिंदूर
की होली नाटक का प्रकाशन 1931 में हुआ।
नाटक के पात्र
मुरारीलाल – जो कि एक डिप्टी कलेक्टर के पद पर आसीन है। जिसने दस हज़ार रुपये लेकर रजनीकांत नामक लड़के की हत्या का मार्ग निरापद कर देता है।
चन्द्रकान्ता – मुरारीलाल की बेटी है जो रजनीकांत से प्रेम करती है और मृत रजनीकांत के हाथों अपनी माँग में सिंदूर भर कर उसकी विधवा बन जाती है।
मनोरमा – रूढ़िवादी सोच वाली स्त्री और चन्द्रकान्ता की विरोधी।
भगवन्त सिंह – रजनीकांत की हत्या करने वाला।
रजनीकांत – चन्द्रकान्ता का प्रेमी ।
सिंदूर की होली नाटक की समीक्षा
इस नाटक के दो पात्र हैं मनोरमा और चन्द्रकान्ता जो एक दूसरे के विरोधी है।
मनोरमा जो कि विधवा का समर्थन करती है और चन्द्रकान्ता रोमांटिक प्रेम का।
मनोरमा विधवा विवाह का विरोध स्वयं बुद्धिवाद का विरोध करने लगता है और चन्द्रकान्ता का रोमांटिक का तर्क बुद्धिवाद हो जाता है।
रोमांटिक भावुकता और यथार्थवादी बुद्धिवाद की टकराहट मिश्र जी के नाटकों में प्रस्तुत हुई है।
नाटक के सभी पात्र भावुकता से परिपूर्ण है।
मिश्र जी के नाटक में पात्र अंदर से भावुक और बाहर से बुद्धिवादी चित्रित हुए है।
इसे भी पढ़े बकरी नाटक की समीक्षा।Like this:
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